Force Motors की अनकही कहानी: Tempo से लेकर Army, Mercedes–BMW तक का सफर

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फोर्स मोटर्स – इंडिया का अनसंग हीरो
फोर्स मोटर्स जिसे एक फ्रीडम फाइटर ने इस सपने के साथ शुरू किया था कि इंडिया की सड़कों पर सिर्फ इंडिया में बनी गाड़ियां ही दौड़ती दिखे। इसे देखकर कुछ याद आया टेमो हैंडसीट खेत के रास्तों में धूल उड़ाती हुई बच्चों को स्कूल ले जाते हुए यह टेमो आज भी गांव देहात की सड़कों पर दिख जाती है। इसे फोर्स की पैरेंट कंपनी ने बजाज के साथ मिलकर बनाया था। और आज हालात यह है कि हर थ्री व्हीलर को हम टेमो ही कहकर बुलाते हैं। चाहे कंपनी कोई भी हो, ऑफिस जाना हो या स्कूल फोर्स की बस आती है। इमरजेंसी हो तो हॉस्पिटल ले जाने वाली एंबुलेंस भी फोर्स की ही होती है। और हां, अगर कभी इंडियन आर्मी के काफिले पर नजर पड़ी हो, तो आपको Fords मोटर्स की यूटिलिटी व्हीकल्स के साथ-साथ एक कॉम्पैक्ट एसयूवी, Fords Gurkha भी कतार में दिखेगी। जिससे Mahindra Thar को भी डर लगता है।
प्रीमियम कार्स के लिए इंजन बनाने वाली कंपनी
लेकिन यह तो कुछ भी नहीं है। जो कंपनी गांव में ट्रैक्स चलाती है, वही कंपनी उन कार्स के लिए इंजन भी बनाती है जिनकी कीमत करोड़ों में है। Mercedes, Benz, BMW और Rolls Ryce जैसी दुनिया की सबसे प्रीमियम ब्रांड्स में जो इंजन लगाए जाते हैं। जानते हैं उन्हें बनाता कौन है? FS मोटर्स। लेकिन रुकिए जरा। क्या आपने टीवी पर FS का कोई ऐड देखा है? किसी बड़े स्लेव को उनकी गाड़ी प्रमोट करते हुए देखा है? शायद नहीं।

पहचान क्यों नहीं मिल पाई?
सवाल तो उठता है कि जो कंपनी 70 साल से भी ज्यादा पुरानी है जिसका इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर इतना दमदार है कि Tata और Mahindra जैसे जॉइंट्स को भी टक्कर दे सकती है जो देश की रोडवेज, स्कूल बसेस, एंबुलेंसेस और आर्मी तक का भरोसा जीत चुकी है। उसके बारे में लोग इतना कम क्यों जानते हैं? आखिर वजह क्या है कि Fords मोटर्स की वो गाड़ियां जो देश के हर कोने में दौड़ती हैं, उन्हें वो पहचान नहीं मिल पाई जो मिलनी चाहिए थी। आज की इस वीडियो में हम जानेंगे इंडियन ऑटोमोबाइल सेक्टर के सबसे अंडर रेटेड वॉरियर फोर्स मोटर्स की पूरी कहानी और वीडियो के आखिर तक आप खुद कहेंगे ऐसी कंपनी को हमने अब तक नजरअंदाज कैसे कर दिया।
Navalmal Firodia – एक फ्रीडम फाइटर की सोच
यह कहानी शुरू होती है साल 1910 में महाराष्ट्र के छोटे से टाउन अहिल्यानगर से। यहां एक मिडिल क्लास जैन फैमिली में जन्म हुआ नवलमल कुंदलमल फिरोदिया का। उनके पूर्वज राजस्थान के फिरोज गांव से थे, जहां पानी भी एक लग्ज़री हुआ करता था। इसी किल्लत ने उनके परिवार को महाराष्ट्र शिफ्ट होने पर मजबूर किया। उनके पिता एक ईमानदार बिज़नेसमैन थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत में ईमानदार लोगों की कोई कद्र नहीं थी।
शुरुआती पढ़ाई अहिल्यानगर से करने के बाद नवलमल जी ने वकालत की डिग्री हासिल की। लेकिन उनके मन में हमेशा यह सवाल घूमता रहता था— “मैं देश के लिए क्या कर सकता हूं?” इसी सोच ने उन्हें गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन की तरफ खींच लिया। 1930 की दांडी यात्रा ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया और उन्होंने वकालत की किताबें छोड़ आज़ादी की जंग में कूदने का फैसला किया।
वह कांग्रेस मूवमेंट्स में एक्टिव हुए और 1942 के क्विट इंडिया मूवमेंट के दौरान गिरफ्तार होकर पुणे की यरवडा जेल में डाल दिए गए। करीब 1 साल 6 महीने जेल में रहने के दौरान उनकी मुलाकात गांधी जी से भी हुई। यहीं उन्हें यह एहसास हुआ कि “सिर्फ राजनीतिक आज़ादी काफी नहीं है, असली आज़ादी आर्थिक आत्मनिर्भरता से आएगी।”
जेल से बाहर निकलते ही नवलमल जी ने अपने मिशन की शुरुआत की। 1946 में उन्होंने मुंबई में एक छोटी सी एजेंसी खोली जो टाइपराइटर्स बेचती थी। फिर 1947 में आज़ादी के तुरंत बाद उन्होंने जय हिंद इंडस्ट्रीज़ की नींव रखी। उनका सपना था— भारत में ही गाड़ियां बनाना और लोगों को रोजगार देना।
शुरुआत बेहद कठिन थी। न मशीनरी, न इंजीनियर्स, न ट्रेनिंग और न ही पैसा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गांव के कारीगरों और टेक्निशियंस को बुलाकर छोटे-छोटे मशीन पार्ट्स बनाना शुरू किया। देशभक्ति की लहर थी और हर कोई नवलमल जी के विज़न में शामिल हो गया। यहीं से FS मोटर्स की नींव पड़ी।
धीरे-धीरे कंपनी को सरकारी ऑर्डर्स मिलने लगे और फिर स्वदेशी गाड़ी बनाने का सपना आगे बढ़ा। इस दौरान नवलमल जी ने गरीब साइकिल रिक्शा खींचने वालों की हालत देखी और सोचा— क्यों न उनके लिए सस्ता और टिकाऊ पब्लिक ट्रांसपोर्ट तैयार किया जाए? इसी सोच के साथ उन्होंने जमनालाल बजाज से हाथ मिलाया और 1958 में जर्मन कंपनी Temo Works के साथ मिलकर लॉन्च किया टेम्पो हंसीट।
यह तीन पहियों वाला छोटा कमर्शियल व्हीकल था जिसने पूरे इंडिया में तहलका मचा दिया। किसान हो या दुकानदार, हर किसी की जुबान पर एक ही नाम था— “टेम्पो ले लेंगे।” इतना पॉपुलर हुआ कि आज भी हर थ्री व्हीलर को हम “टेम्पो” कहते हैं। इसके बाद मेटाडोर वैन ने भारत की सड़कों पर क्रांति ला दी।
1988 में लॉन्च हुआ टेम्पो ट्रैक्स जिसने दूर-दराज के इलाकों तक पहुंच बनाई। कंपनी 90 के दशक तक LCV सेगमेंट का 10% मार्केट शेयर रखने लगी। लेकिन इसी बीच बड़ी चुनौती आई— जर्मन पार्टनर Temo Works डेमलर के अधीन हो गया और बजाज ने भी अपने शेयर बेचने शुरू कर दिए।
1997 में नवलमल जी का निधन हुआ और कंपनी की बागडोर संभाली उनके बेटे डॉ. अभय फिरोदिया ने। 2000 में कड़े एमिशन नॉर्म्स की वजह से टेम्पो हंसीट का प्रोडक्शन बंद करना पड़ा। अगले साल बजाज और टेमो वर्क ने JV से बाहर निकलकर अपने शेयर भी बेच दिए।
अब अभय फिरोदिया बिल्कुल अकेले थे। फैक्ट्री, इंजीनियर्स और टेक्नोलॉजी सब उनके पास था, लेकिन इंजन का पेटेंट नहीं था। उन्होंने Mercedes से इंजन असेंबली लाइसेंस हासिल किया और जल्द ही ट्रैक्स, GK और ट्रैवलर को नए अवतार में लॉन्च किया। कंपनी का नया नाम बना Force Motors।
2005 तक कंपनी का पूरा फोकस था— अपना खुद का इंजन बनाना। 2010-11 में उन्होंने यह लक्ष्य हासिल कर लिया। आज भी Force Motors का ध्यान कमर्शियल, ग्रामीण और ऑफ-रोड व्हीकल्स पर है।
Force Motors की प्रिसाइज़ इंजीनियरिंग और भरोसेमंद क्वालिटी ने दुनिया के बड़े ब्रांड्स को प्रभावित किया। 2015 में BMW के इंजन असेंबली के लिए चेन्नई प्लांट बना। 2016 में पुणे के चाकण में Mercedes Benz के इंजन और एक्सल का प्रोडक्शन शुरू हुआ। 2018 में Rolls Royce Power Systems के साथ JV कर हाई-पावर डीज़ल इंजन बनाना शुरू किया।
सोचिए, वही कंपनी जो गांव-गांव में ट्रैक्स और ट्रैवलर चलाती है, आज BMW, Mercedes और Rolls Royce जैसी लग्ज़री कंपनियों को इंजन सप्लाई करती है। लेकिन इसकी चर्चा शायद ही कभी होती है क्योंकि Force Motors ने कभी आक्रामक मार्केटिंग पर ध्यान नहीं दिया। उनका फोकस हमेशा रहा—“Quality देश की ज़रूरत।”

निष्कर्ष – क्यों फोर्स मोटर्स रह गया पीछे?
असल में आज FS मोटर्स के मार्केट शेयर की अगर बात करें तो यह स्कूल बसेस और एंबुलेंसेस में भले ही एक डोमिनेंट प्लेयर हो लेकिन ओवरऑल नेशनल कमर्शियल व्हीकल मार्केट में इनकी हिस्सेदारी सिर्फ 3% के आसपास है क्योंकि इनके पास ना तो Tata, Mahindra और Ashok Leyland की तरह प्रोडक्ट रेंज है ना डीलरशिप और सर्विस नेटवर्क और ना ही PAN इंडिया ब्रांड अपील और रही बात Mercedes और BMW जैसी प्रीमियम कार्स बनाने की तो FS हमेशा से एक V2B यूटिलिटी फर्स्ट कंपनी रही है नॉट B2C मास मार्केट उनका पूरा ध्यान हाई टॉर्क, हैवी ड्यूटी, कमर्शियल और गवर्नमेंट यूज़ की गाड़ियों पर रहा है। नॉट अनरिफाइंड पेट्रोल इंजन कार्स और सबसे हैरानी की बात तो यह है कि आज भी उनके पास कोई पेट्रोल इंजन नहीं है। यानी कुल मिलाकर देखें तो Fords मोटर्स ने खुद को एक बहुत ही सीमित दायरे में ऑपरेट किया। कभी-कभी अपनी सीमाएं भी खुद तय कर लेनी सबसे बड़ी हार होती है और शायद FS मोटर्स भी उसी भूल का शिकार हो गया। आरएडी में वह पीछे रह गए और दूसरे ब्रांड्स के सहारे कंपनी को चलाते हुए उन्होंने अपनी ग्रोथ की रफ्तार को खुद ही धीमा कर लिया।
आज की स्थिति
आज फाइव मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज के साथ फोर्स 25 कंट्रीज में मौजूद है और 300 से भी ज्यादा सेल्स एंड सर्विस टच पॉइंट्स के साथ 10,000 से भी ज्यादा लोगों को रोजगार देता है। उनके पास सब कुछ है, स्किल है, सिस्टम है और इंडिया को चौंका देने की काबिलियत भी। बस स्ट्रेटजी में थोड़ा सा बदलाव उन्हें मार्केट लीडर बना सकता है।
आखिरी संदेश
अब जब अगली बार कोई आपको बोले कि इंडिया सिर्फ असेंबली करता है तो मुस्कुरा कर कहिएगा कि Fords मोटर्स जैसी कंपनीज़ ना सिर्फ इंजन बनाती है बल्कि भरोसा भी करती हैं। अगर आपको यह कहानी इंस्पायरिंग लगी हो तो कमेंट जरूर करिएगा। FS मोटर्स जैसे अनसंग हीरोज़ को आपके आवाज की जरूरत है।
Very nice presentation your content
Thank you very much!