Silent Epidemic:पूरी दुनिया में 1 में से 8 लोग Depression and Anxiety डिप्रेशन से जूझ रहे हैं – WHO रिपोर्ट 2025

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Silent Epidemic:पूरी दुनिया में 1 में से 8 लोग Depression and Anxiety डिप्रेशन से जूझ रहे हैं – WHO रिपोर्ट 2025

Silent Epidemic: 1 in 8 People Worldwide Are Struggling with Anxiety and Depression – WHO Report 2025

हताशा और मेंटल हेल्थ

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था। व्यक्ति को मैं नहीं जानता था। हताशा को जानता था। यह पंक्तियां हैं विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता से और जो हम आपको बताने वाले हैं, उस पर एकदम फिट बैठती हैं।

WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने 2 सितंबर को कुछ आंकड़े जारी किए। ये आंकड़े हताशा से जुड़े हुए हैं। WHO ने बताया कि पूरी दुनिया में 100 करोड़ से ज्यादा लोग मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स से जूझ रहे हैं।

मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स का प्रभाव

मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स का असर इंसान के सोचने, समझने की क्षमता, व्यवहार और इमोशंस पर पड़ता है। इंसान डिप्रेशन और एंग्जायटी महसूस करता है। ये दोनों ही कंडीशंस दुनिया में बहुत आम हैं। यह किसी भी उम्र और आय वर्ग के लोगों को हो सकती हैं।

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे आम मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर एंग्जायटी और डिप्रेशन हैं। साल 2021 में ये दोनों मेंटल हेल्थ से जुड़ी दो तिहाई कंडीशंस के लिए अकेले जिम्मेदार थे।

दुनिया में मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स का बढ़ता हुआ ट्रेंड

2011 से 2021 के बीच जितनी तेजी से दुनिया की आबादी बढ़ी, उतनी ही तेजी से मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर से जूझ रहे लोगों की संख्या भी बढ़ी। पुरुषों में ADHD यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर, ऑटिज्म और एिओपैथिक डिसऑर्डर ऑफ इंटेलेक्चुअल डेवलपमेंट ज्यादा पाया गया।

एिओपैथिक डिसऑर्डर ऑफ इंटेलेक्चुअल डेवलपमेंट का मतलब है जब किसी व्यक्ति में इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी हो, लेकिन उसकी वजह पता ना चल पाए। वहीं महिलाओं में एंग्जायटी, डिप्रेशन और ईटिंग डिसऑर्डर ज्यादा पाया गया।

उम्र और मेंटल हेल्थ

एंग्जायटी के लक्षण आमतौर पर डिप्रेशन से पहले दिखाई देते हैं। मगर 40 पार करने के बाद यानी 40 साल के बाद डिप्रेशन के मामले एंग्जायटी से ज्यादा पाए जाते हैं। 50 से 69 साल के लोगों को डिप्रेशन ज्यादा होता है।

WHO की रिपोर्ट्स बताती हैं कि युवाओं में मौत की एक बड़ी वजह यही है। दुनिया भर में हर 100 में से एक मौत खुद की जान लेने से होती है। यहां तक कि एक इंसान औसतन 20 बार कोशिश करता है। सिर्फ 2021 में करीब 7,27,000 लोगों ने अपनी जान ले ली।

15 से 29 साल की महिलाओं में जान लेने की यह दूसरी सबसे बड़ी वजह थी। इसी एज ग्रुप के पुरुषों में मौत की यह तीसरी सबसे बड़ी वजह थी।

कोविड-19 और मेंटल हेल्थ

रिपोर्ट में कोविड-19 का भी जिक्र हुआ। दरअसल उस वक्त एक्सपर्ट्स आशंका जता रहे थे कि कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों में स्वेच्छा से जीवन समाप्त करने की दर बढ़ जाएगी। वजह लोगों का अलग-थलग रहना यानी सोशल आइसोलेशन, अकेलापन, घरेलू हिंसा, नौकरी जाना और आर्थिक तंगी वगैरह थी।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बस एक एक्सेप्शन था दिल्ली। यहां महिलाओं में अपनी जान लेने के मामले बढ़ गए।

मेंटल हेल्थ बजट और भारत का परिदृश्य

यह तो तय है कि मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स एक बड़ी आबादी को प्रभावित करते हैं। लेकिन इसके बावजूद देश अपने हेल्थ बजट का सिर्फ 2% ही मेंटल हेल्थ पर खर्च करते हैं। और डिप्रेशन से जूझ रहे सिर्फ 9% लोग ही ऐसे हैं जिनका सही इलाज हो पाता है।

भारत में कितने लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं? WHO की रिपोर्ट में इसका कोई जिक्र नहीं है। लेकिन साल 2019 में इंडियन जर्नल ऑफ साइकट्री में एक स्टडी छपी थी। इसमें WHO के हवाले से बताया गया था कि भारत में 5.5 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। वहीं 3.5 करोड़ से ज्यादा लोग एंग्जायटी से जूझ रहे हैं। और यह तो केवल रिपोर्टेड डाटा है।

सोचिए हमारे देश में कितने सारे लोग चुपचाप एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से परेशान हैं।

समय रहते मदद लें

अगर आप या आपके आसपास कोई डिप्रेशन या एंग्जायटी से ग्रसित है, तो हालत बिगड़ने का इंतजार ना करें। तुरंत किसी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से मिलें ताकि इन डिसऑर्डर्स को बढ़ने से रोका जा सके और आपकी जिंदगी बेहतर बन सके।

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