Divya Bharati Case: 19 साल की सुपरस्टार की ज़िंदगी और रहस्य | आत्महत्या, हादसा या हत्या?- पूरी कहानी

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Divya Bharti at 19: The Untold Story of Bollywood’s Youngest Superstar & Her Mysterious Death

Divya Bharti at 19: The Untold Story of Bollywood’s Youngest Superstar & Her Mysterious Death

मनहूस रात 5 अप्रैल 1993

वह मनहूस रात देर शाम 5 अप्रैल 1993 मुंबई तुलसी अपार्टमेंट्स वर्सोवा पांचवी मंजिल बॉलीवुड की उभरती सुपरस्टार दिव्या भारती हमेशा की तरह आज भी खिड़की पर बैठी थी। वही कोना जो उन्हें सबसे ज्यादा सुकून देता था। आज तो उनका मूड भी बढ़िया था। वे हाथ में अपना पसंदीदा वाइट रम का ग्लास लिए मजे में थे और अपना पैर डोल रहे थे। हालांकि एक पैर पर पट्टी बंधी थी। एक छोटी सी चोट की वजह से कुछ ही देर पहले नीता लुल्ला उनकी आने वाली फिल्म आंदोलन के डिजाइनर कॉस्ट्यूम के बारे में बात करने के लिए आई थी। साथ ही उनके साइकेट्रिस्ट पति डॉक्टर श्याम जो दिव्या का इलाज भी कर रहे थे। पिछले कुछ महीनों से वह भी साथ आए थे ताकि दिव्या का हालचाल पूछ सके। बस वो श्याम काम की मीटिंग से एक मस्ती भरी गेट टुगेदर बन गई। जहां तीनों ड्रिंक्स एंजॉय करने लगे और उस तरफ किचन में दिव्या की प्यारी मेड अमृता झटपट चखना तैयार कर रही थी। थोड़ी देर बाद दिव्या ने अपने लिए वाइट ड्रम का दूसरा पैक बनाया और अपनी फेवरेट जगह चली गई। खुली खिड़की पर बैठकर ड्रिंक एंजॉय करने और अपने ख्यालों में खोते हुए उसने खुद से सवाल किया। साझेदड़ में हम दोनों आखिर कब झगड़ना बंद करेंगे? इस तरफ लुल्ला कपल्स भी टीवी देखतेदेखते अपनी ड्रिंक्स को एंजॉय कर रहे थे कि तभी अचानक दिव्या की आवाज गूंजी। अमृता और अपनी जोर की चीख में वो बस एक ही शब्द बोल पाई। जैसे मानो वो फिर से अपने ख्यालों में खोकर एकदम चुप हो गई हो। लेकिन तीनों को उसकी आवाज में कुछ तो अजीब महसूस हुआ। जिस अजीब फीलिंग ने लुल्ला कपल को तुरंत टीवी से नजरें हटाकर खिड़की की तरफ देखने पे मजबूर कर दिया। अमृता दौड़ी दौड़ी बाहर आई। उसे दिव्या के पैर दिखे मगर सिर्फ 1 मिलीसेकंड के लिए खिड़की से उसके गुम हो जाने से पहले और फिर सन्नाटा। बॉलीवुड की सबसे होनहार यंग टैलेंट में से एक दिव्या भारती की पांचवी मंजिल से नीचे गिरने से दर्दनाक मौत हो गई।

साधारण परिवार से बॉलीवुड तक का सफर

चलिए थोड़ा पहले 1980 का मुंबई। दिव्या एक मिडिल क्लास फैमिली में पली बड़ी थी। जहां उनका कोई फिल्मी कनेक्शन नहीं था और हम सबकी तरह ही उसे भी पढ़ाई पसंद नहीं थी। पर वह एक्ट्रेस बनने का सपना देखते थे। अपनी आम जिंदगी से बाहर निकलने के लिए। अब जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ी, उसकी नेचुरल खूबसूरती, कैमरा फ्रेंडली फेस और उसकी आंखें सबका ध्यान खींचने लगी और जल्द ही उन्हें लिटरल साबुन का ऐड करने का मौका मिला। जो कैमरे के सामने उनका पहला अनुभव था।

साउथ इंडस्ट्री से बॉलीवुड ब्रेक

एक दिन 1988 में गोविंदा के भाई कीर्ति कुमार ने 14 साल की दिव्या को मुंबई की एक वीडियो लाइब्रेरी में देखा और वह उनकी खूबसूरती देखकर दंग रह गए। उन्होंने दिव्या को अपनी फिल्म राधा का संगम में कास्ट करने का सोचा जो दिव्या की पहली हिंदी फिल्म हो सकती थी। दिव्या तो ऑफर सुन के ही सातवें आसमान पर पहुंच गई। उसने स्कूल तक जाना छोड़ दिया और डांस, एक्टिंग, क्लासिकल सिंगिंग सब सीखना शुरू कर दिया अपने रोल के लिए। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उसके ऑडिशन से प्रोड्यूसर खुश नहीं थे। नहीं, नहीं। बहुत छोटी लगती है। थोड़ी गोलू मोलू भी है। और वह खुद कोई नुकसान पहुंचाने लगी और बेरहमी से कलाई पर चोट मारने लगी। लेकिन उनकी मां जो हमेशा उनके साथ खड़ी रहती थी वह उसे कश्मीर घुमाने ले गई ताकि दिव्या थोड़ा बेहतर महसूस कर सके। बेटा बाहर वालों के लिए यह दुनिया बहुत कठोर है। मजबूत बनो रास्ता खुद निकालो। और फिर जैसे ज्यादातर स्ट्रगलिंग एक्ट्रेसेस करते हैं दिव्या भी साउथ चली गई और सिर्फ 16 साल की उम्र में उन्होंने वेंकटेश के साथ डेब्यू किया। तेलुगु फिल्म बोबेली राजा में और उसने खुद को साबित किया 14 तेलुगु फिल्मों के साथ जिसमें असेंबली रऊडी और रऊडी अलूडु जैसी हिट्स भी शामिल थी। 2 साल की मेहनत लगी पर साउथ के फेम ने आखिरकार उनका बॉलीवुड का रास्ता खोल दिया और उन्हें पहला ब्रेक मिला विश्व आत्मा में सनी देओल और संजय दत्त जैसे स्टार्स के साथ जिसका गाना सात समंदर पार आज भी लोगों की जुबान पर है। इसके बाद आई शोला और शबनम दीवाना जान से प्यारा जो कि सारी बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वो भी सिर्फ एक साल के अंदर। यह एक बहुत ही बड़ी बात थी बाहर से आई एक छोटी उम्र की लड़की के लिए जिसने अपना नाम बनाया ऋषि कपूर, संजय दत्त, गोविंदा और सनी देओल जैसे मझे हुए कलाकारों के साथ इंडस्ट्री में वो इसलिए भी छा गई क्योंकि उनकी खूबसूरती, एक्टिंग और डांसिंग का कॉन्फिडेंस उसी दौर के सुपरस्टार श्रीदेवी को टक्कर देता था। वो पूरी तरह से प्रोफेशनल थी। इतनी तैयारी करके आती थी कि ज्यादातर शॉट पहले ही टेक में ओके हो जाते थे। जहां दूसरे एक्टर्स को डांस सीखने में कई-कई दिन लगते थे। वे चंद घंटों में मास्टर कर लेती थी।

शोहरत और सुपरस्टार्स के साथ काम

एक बार जब डायरेक्टर डेविड धवन ने बोला दिव्या तुम्हें चंकी पांडे के साथ आंखें में कास्ट कर रहे हैं। बस तभी उन्होंने जोरदार नाराजगी दिखाई थी। नो वे जरा उसका चेहरा तो देखो। लेकिन जो भी हो दिव्या भारती ने बॉलीवुड में एंट्री मारी और 14 महीनों में 14 फिल्में साइन की और बन गई इंडस्ट्री की सबसे ज्यादा कमाने वाली एक्ट्रेसेस में से एक। यह किसी भी ड्रीम करियर से कम नहीं था। लेकिन कैमरे के पीछे की कहानी कुछ और ही कह रही थी। जल्द ही मिली शहरत और लगातार हो रही शूटिंग ने उन्हें दुख के जाल में घेर लिया। अक्सर वे एक ही दिन में दो शहरों में शूटिंग करती थी। हैदराबाद में तेलुगु फिल्म और मुंबई में हिंदी फिल्म्स और अब ऊपर से उनकी खुद को नुकसान पहुंचाने की आदतें भी लौटने लगी। उन्हें खतरनाक स्टंट के साथ कभी ऊंची इमारतों की छतों के मुंडेर पर चढ़ जाना या कभी शूटिंग के दौरान खतरनाक खाइयों के ऊपर से छलांग लगाना और ऐसी खतरनाक चीजों में उन्हें एक अजीब सा सुकून मिलने लगा। दोस्तों जिस समय हम कॉलेज में घूमने फिरने, मस्ती करने की सोचते थे, वो उस समय दिन रात काम कर रही थी। चाहे थकान हो या ना हो। वैसे आज जहां आलिया भट्ट खुलकर अपने ध्यान देने में दिक्कत और एंजायटी के बारे में बात करती हैं। अब जब मुझे पता है तो इसे हैंडल करना आसान है। उस वक्त 30 साल पहले यह सारी मेंटल हेल्थ को कोई पूछता भी नहीं था। आजकल की लड़कियां भी ना बड़ी इमेच्योर होती जा रही है। करने दो जैसा कर रही हैं। तब जिंदगी में बाहर आ रही थी।

प्यार और शादी का राज

जब शोला और शबनम के सेट पर प्रोड्यूसर साजिद नाडिटियावाला गोविंदा से मिलने आए और जैसे ही गोविंदा ने दिव्या को उनसे मिलाया साजिद तो बस दिव्या को देखते ही रह गए। धीरे-धीरे मुलाकातें बढ़ती गई और फिर दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। साजिद जो उम्र में बड़े थे दिव्या का बहुत ध्यान रखते थे और जब दिव्या बचकानी नाराजगी दिखाती थी तब भी वह उन्हें मनाना नहीं भूलते थे। लेकिन इसके साथ-साथ टेंशन भी था क्योंकि उनका यह रिश्ता घर वालों को जरा भी पसंद नहीं था। मुसलमान से शादी करके नाम खराब कर दे हमारा। अपने ही करियर पर कुल्हाड़ी मार रही है तू। इन सबके बावजूद दिव्या ने अपने दिल की सुनी और अपने 18वें बर्थडे के सिर्फ 2 महीने बाद 10 मई 1992 को उसने साजिद से इस्लामिक रीति रिवाज से शादी कर ली। वो भी तुलसी अपार्टमेंट के पांचवें मंजिल के उसी फ्लैट में और उसी रात दिव्या ने इस्लाम भी कबूल कर लिया। अब मैं सना नादिया वाला हूं। और जब वो रात को घर नहीं लौटी तो उसके माता-पिता घबरा गए। दोस्तों बता दें ये वही दौर था जब मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे। लेकिन देर सवेर दिव्या घर वापस आ गई। अगले 4 महीनों तक उसने घर वालों से शादी छुपाई रखी। मगर ये छुपाने वाली बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। और उसी समय यह बात उसकी मां को किसी और से पता चल गई। बस मां बेटी का रिश्ता जो बचपन से उसकी रीड की हड्डी बनी हुई थी, उसमें दरारें आ गई। तू ऐसे इंसान पर भरोसा कैसे कर सकती है? वो बेचारी साजिद के घर भी नहीं जा सकती थी। क्योंकि उनकी फैमिली भी ऐसे ही विचार रखती थी और उनकी शादी को स्वीकारती नहीं थी। मगर कुछ महीनों बाद आखिरकार साजिद ने दिवाली के दिन सारी सच्चाई दिव्या के पापा को बता ही दी। ठीक है बेटा अब वो भी बड़ी एक्ट्रेस बन चुकी है। अब क्या ही कहें इन सबके बाद साजिद दिव्या को लेकर वहीं तुलसी अपार्टमेंट के फ्लैट में आ गए। जहां अब सब कुछ एक ड्रीम लाइफ जैसा लग रहा था। लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। दोस्तों साजिद ने दिव्या पर और फिल्में साइन करवाने का दबाव डालना शुरू कर दिया। जिस वजह से उनके झगड़े बढ़ने लगे। थक गई मैं। किससे प्यार किया? तुम बदल गए। इससे दिव्या का मेंटल बर्नआउट और बिगड़ता गया।

झगड़े, विवाद और डिप्रेशन

दोस्तों जरा उस दौर की हवा को भी समझिए। 1992-93 में मुंबई का वो सबसे हिंसक दौर था जब भयानक दंगे हो रहे थे और उसी मार्च 1993 में डी कंपनी का भयानक मुंबई बम ब्लास्ट भी तो हुआ था। साथ ही अंडरवर का काला धन बॉलीवुड में बहना शुरू हो गया था। दोस्तों, यह वही टाइम था जब मंदाकिनी और ममता कुलकर्णी जैसी कई हीरोइनों को डॉन से रिश्ते होने की वजह से फिल्में मिली थी। इस पर हमारी पूरी स्टोरी देखिएगा। दिव्या की 1992 की फिल्म दिल ही तो है कि प्रोड्यूसर समीर और हनीफ कादावाला जिनका नाम सामने आया था डी कंपनी के टॉप थ्री दाऊद टाइगर और याकूब मेनन के साथ। यही नहीं उन पर यह भी आरोप लगे थे कि उन्हीं ने ही संजय दत्त को बम धमाकों में इस्तेमाल हुए हथियार सप्लाई किए थे। अब यहां दिव्या को ना केवल एक मुस्लिम से शादी करने के लिए कट्टरपंथी समूह से जान की धमकी मिलने लगी बल्कि उनके ऊपर अफवाहों और षड्यंत्र की कहानियां भी शुरू हो गई जो आज तक बंद नहीं हुई है। क्या दिव्या को समीर हिंगोरा, हनीफ कड़ावाला या बम धमाके से जुड़ी कोई जानकारी थी जिसने उन्हें निशाना बना दिया हो या फिर क्या उन्हें शक था कि साजिद को मुंबई ब्लास्ट के बारे में और भी कुछ पता है जिसकी सच्चाई वे छिपा रहे हैं। बहरहाल बता दें इन सब बातों के सबूत नहीं है। फिर से डिप्रेशन और सेल्फ डिस्ट्रक्शन। इन तमाम विवादों से अलग बेचारी दिव्या को ना साजिद का साथ मिला ना घरवालों का। वह तो सेट पर भी इस कदर तक टूट गए थे कि खुलेआम कहने लगी कोई मुझे जहर लाके दे दो। मुझे लगता है मुझे मर जाना चाहिए। और इसी दौर में उन्होंने चुपचाप साइकेट्रिस्ट डॉक्टर लुल्ला से काउंसलिंग लेना शुरू किया था। खैर, बता दें कि उनकी को एक्ट्रेस और दोस्त गुड्डी Maruti ने कई बार उन्हें अपने फ्लैट की खुली खिड़की से बाहर की तरफ बैठकर टांगे लटकाते हुए देखा था। दिव्या बहुत खतरनाक है। प्लीज अंदर जाओ। अब मौत से एक दिन पहले 4 अप्रैल को गुड्डी Maruti की बर्थडे पार्टी में दिव्या बाहर से तो खुश दिख रही थी। मगर पर्दे के पीछे उसके दोस्त कुछ और ही बता रहे थे। अब सहा नहीं जा रहा। यह सब कुछ बहुत ज्यादा हो रहा है।

5 अप्रैल 1993 की आखिरी शाम

अगली सुबह 5 अप्रैल 1993 को सब कुछ ठीक लग रहा था। क्योंकि दिव्य और उनके भाई ने मिलकर बैंड्रा वेस्ट के नेप्च्यून अपार्टमेंट में पोर बीएच के फ्लैट खरीदने की डील फाइनल की थी। अपने परिवार के लिए एक सपनों का घर। उन्होंने यह खुशी का पल अपने दोस्तों और परिवार के साथ फोन करके बिताया और प्रोड्यूसर्स को भी मनाया। आज की सारी शूटिंग कैंसिल कर दो प्लीज। मगर उनकी यह खुशी ज्यादा देर तक टिकी नहीं क्योंकि उसी शाम उसकी साजिद से फिर लड़ाई हो गई। यह हुआ दिव्या के संजय दत्त के साथ साजिद के फिल्म आंदोलन में काम करने से मना करने की वजह से। क्योंकि उसका मुंबई धमाकों के साथ कनेक्शन था। और साथ ही साजिद के दोस्त हिंगोरा और कड़ावाला के मुद्दे पर भी लड़ाई हुई जो कि धमाके से जुड़े हुए थे। कमरे का माहौल गमाया हुआ था और साजिद गुस्से में बाहर निकल गया। 10 मिनट में वापस नहीं आए ना तो आज के बाद मेरा चेहरा नहीं देख पाओगे। जिसकी साजिद ने भारी कीमत चुकाई क्योंकि अब जब उसने दिव्या को देखा तो वह आशिक सचमुच एक पल के लिए जम गया। उसकी प्रेमिका अस्पताल में अपने जख्मों से लड़ रही थी। उसे इतना बड़ा सदमा लगा कि वह जमीन पर गिर गया और उसके मुंह से झांक तक निकलने लगा। डॉक्टर भागते हुए आए और उसे तुरंत होश में लाने की कोशिशें करने लगे। हार्ट अटैक का पता चलने पर साजिद को तुरंत उसी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करवाया गया। मेरी पत्नी नीचे है। ऐसा कह रहे हैं कि वो मर गई। इस तरफ दिव्या के पिता बेकाबू हो गए। उसी ने मेरी बेटी को मारा है। सब कुछ चला दो। दिव्या के भाई कुणाल ने खुद को दोषी माना। मुझे अपनी बहन को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था। कितनी परेशान थी वह बेचारी और दिव्या की मां उसकी सबसे बड़ी साथी वो तो आने वाले समय में डिप्रेशन से लड़ाई लड़ने लगी और उनकी जिंदगी के तो जैसे रंग ही उड़ गए।

हादसा या साजिश?

5 साल बाद 1998 में मुंबई पुलिस ने केस बंद कर दिया और दिव्या के केस को सिर्फ दुर्घटना करार दिया। कोई साजिश नहीं। चश्मदीदो का भी कहना है कि दिव्या खिड़की के अंदर बैठकर ड्रिंक ले रही थी। जब उसने किसी कार की आवाज सुनी और उसने यह सोचा होगा कि साजिद की कार है तो वह खुशी से बाहर झुकी जो कि कुछ ज्यादा ही झुकना हो गया। उसका संतुलन खोया और वे गिर गई। यहां तक कि उसके परिवार ने भी कहा साहब वो खिड़की पर बैठी थी। संतुलन खो दिया और गिर गई। आत्महत्या या हत्या का कोई सवाल ही नहीं उठता। यह तो सच है कि वह लंबे समय से परेशान थी। वे खुद को नुकसान पहुंचाती थी। पति और परिवार से लड़ती रहती थी। लेकिन फिर नया अपार्टमेंट खरीदने से चीजें खुशी की तरफ भी मुड़ रही थी। वैसे दोस्तों उस दिन वो अपने पैर अंदर करके बैठी थी जो बिल्कुल भी खतरनाक नहीं था। इसलिए आत्महत्या का तो सवाल ही नहीं उठता।

अनसुलझे सवाल

वैसे दोस्तों सबसे बड़ा संदेह तो इस बात पर जाता है कि पांचवी मंजिल की खिड़की में कोई भी सेफ्टी ग्रिल या ऑटो स्टॉपर नहीं था। जबकि बिल्डिंग के बाकी फ्लैट्स में था। ऐसा क्यों? दूसरा सवाल यह उठता है जहां पार्किंग की हमेशा तंगी रहती है और लोग हमेशा इसे इस्तेमाल करने के लिए हंगामा करते हैं। दिव्या की खिड़की के ठीक नीचे वाली पार्किंग स्लॉट सिर्फ उसी दिन खाली थी क्योंकि हो सकता है ना कि अगर वे कार पर गिरती तो शायद चोट कम लगती और वो बच जाती। पर फिर सवाल यह भी उठता है दोस्तों कि उनकी मेड अमृता जो बचपन से उनके साथ थी जो कि उनकी बड़ी बहन की तरह थी। उन्हें ऐसा भी क्या सदमा लगा कि दिव्या की मौत के एक महीने के अंदर ही उनकी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। मतलब सिर्फ 30 साल की उम्र में हार्ट अटैक, रहस्य या फिर वाकई में सदमा और श्रीदेवी के साथ एक अजीब इत्तेफाक जिससे दिव्या की अक्सर तुलना की जाती थी और बता दें कि उन्हीं श्रीदेवी ने दिव्या की अधूरी फिल्मों जैसे लाडला में उनकी जगह ली। बहरहाल बता दें कि श्रीदेवी की भी 2013 में ऐसी रहस्यमय मौत हुई।

निष्कर्ष

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