Lodha Group का 5000 करोड़ का विवाद–पूरी कहानी

Ram-Lakhan Lodha brothers Abhishek & Abhinandan now face a ₹5000 crore court battle. A legacy of ambition, betrayal & a mother’s emotional plea.
मां मंजू Lodha की भावुक चिट्ठी
जब तुम दोनों पैदा हुए तो मैं खुशी से पागल हो गई। ऐसे लगा जैसे खुद भगवान ने मुझे खुशियों का एक खजाना सौंप दिया है। तुम दोनों साथ बीमार पड़ते साथ ही खेलते और हंसते भी साथ। एक मां होने के नाते मेरे पास जो भी है वो मैं तुम दोनों के लिए ही छोड़ जाऊंगी। मेरी बस यही दुआ है कि तुम दोनों अपने झगड़े खत्म कर दो। यह है मंजू Lodha। देश के जाने-माने रियलस्टेट Group माइक्रोटेक डेवलपर से जो पश्चिम भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है।
राम–लखन से कोर्टरूम तक
इनके बेटे अभिषेक और अभिनंदन जब बड़े हो रहे थे तब वे अपने मां-बाप के आंखों के राम लखन बने रहे। माय नेम इज लखन माय नेम इज लखन। सब एक साथ रहते साथ खाना बनाते और खाते। बिल्कुल एक आम हिंदुस्तानी परिवार की तरह। लेकिन 2025 आते-आते वही दो भाई जो कभी एक दूसरे के लिए जान छिड़कते थे। अब कोर्ट रूम में आमने-सामने खड़े हैं एक दूसरे की ओर नजरें गड़ाए हुए। दोनों अब विरासत, दौलत और ताकत की एक अनकही जंग में उलझ गए हैं।
5000 करोड़ की जंग
दोस्तों अगर यह किसी फिल्म का सीन होता तो छोटा वाला अभिनंदन जो फिलहाल 43 साल का है कहता मेरे पास पैसे हैं, फ्लैट्स हैं, दिमाग है, तेरे पास क्या है? और 46 साल के अभिषेक आत्मविश्वास के साथ जवाब देते हैं मेरे पास Lodha का ट्रेडमार्क है। Lodha वो नाम जिसने कभी दोनों भाइयों को भारत के सबसे बड़े रियलस्टेट कारोबार के वारिस के तौर पर जोड़ा था। अब वही दोनों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रहा है 5000 करोड़ की इस जंग में।
Lodha Group की शुरुआत
दोस्तों, Lodha Group की कहानी शुरू होती है 1980 में। जब मंगल प्रभात Lodha एक छोटे शहर के सीधे साधे लॉ ग्रेजुएट को वकालत छोड़नी पड़ी जब उनके पिता को उसी अदालत का जज बना दिया गया और वो सिर्फ 5000 लेकर मुंबई आ गए बिना किसी प्लानिंग के कि जिंदगी में आगे करना क्या है मगर जल्दी ही उनकी तेज नजर ने मुंबई के बढ़ते मध्यम वर्ग के लिए किफायती घरों की जरूरतों को पहचान लिया और उनके व्यापारिक कौशल ने उन्हें मुंबई के आसपास के छोटे कस्बों में बिल्डिंग बनाने के लिए प्रेरित किया।
राजनीति और कारोबार का मेल
फिर 1990 में एल के आडवाणी की रथ यात्रा से प्रभावित होके और जवानी के दिनों में एबीवीपी से जुड़े रहने के चलते उन्होंने मुंबई में भाजपा ज्वाइन कर ली और 1995 में जब तक उन्होंने Lodha Group को रजिस्टर किया तब तक उनकी राजनीतिक यात्रा भी उड़ान भरने लगी थी क्योंकि उन्होंने कांग्रेस को उन्हीं के मालाबार हिल क्षेत्र में हराया था अपने पहले चुनाव में ही और आज वह वहां से सात बार विधायक बन चुके हैं।
बिजनेस का विस्तार
फिर अपनी कड़ी मेहनत और कुछ अपने राजनीतिक संबंधों की मदद से जो उनको सरकारी अड़चनों को हटाने में मदद करते थे उनका रियलस्टेट धंधा बढ़िया चल पड़ा। लेकिन फिर भी सालाना टर्नओवर केवल 20 करोड़ तक ही सीमित रहा। इसी वजह से उन्होंने अपने बच्चों को विरासत संभालने के लिए तैयार करना तय किया और अपने बड़े बेटे अभिषेक को काम करने के लिए मैकिंसी भेजा और छोटे बेटे अभिनंदन को यूके के कार्डिफ यूनिवर्सिटी में मास्टर्स करने भेज दिया।
अगली पीढ़ी की एंट्री
फिर 21वीं सदी में मंगल प्रभात ने दोनों के काबिलियत के हिसाब से अभिषेक को कंस्ट्रक्शन का काम सौंप दिया और अभिनंदन को बिक्री का जहां वह टैक्स मैनेजमेंट और अकाउंट्स देखते थे। एक ओर केवल 25 साल की उम्र में अभिनंदन डश बैंक से 10640 करोड़ का बाहरी निवेश ले आए। तो वहीं दूसरी ओर अभिषेक ने उन पैसों से आक्रामक रूप से बिजनेस का विस्तार किया और मुंबई में ट्रंप टावर, डोमेवली में पलावा स्मार्ट सिटी, पुणे में Lodha बेलमांडो और लंदन में लिंकन स्क्वायर जैसे प्रसिद्ध प्रोजेक्ट्स का निर्माण किया।
ब्रांड की मजबूती
Lodha Group को भारत के सबसे बड़े रियलस्टेट डेवलपर्स में से एक बनाकर अपने टर्नओवर को केवल एक दशक में 276 करोड़ तक ले आए। फिर उन्होंने अपने ब्रांड का नाम Lodha ट्रेडमार्क भी करा लिया।
पारिवारिक सेटलमेंट
2015 आते-आते जब मंगल प्रभात Lodha 60 साल के हुए तो उन्होंने अपना कारोबार अपने बेटों को सौंपा और खुद राजनीति में कूद पड़े। अभिषेक महत्वाकांक्षी थे और उन्होंने ₹16000 करोड़ का बड़ा कर्ज उठाया जमीन खरीदने और कंस्ट्रक्शन के लिए और अभिनंदन को उन्होंने ब्याज के भुगतान का काम सौंप दिया और इसीलिए उसे इन सब से बाहर निकलना था। मंगल प्रभात को जब तक दोनों भाइयों के बीच की दरार का पता चलता तब तक दरार इतनी गहरी हो चुकी थी कि उसे ठीक करना मुश्किल था।
फैमिली सेटलमेंट एग्रीमेंट
फिर 2 साल बाद पिता के पास कोई और चारा नहीं बचा सिवाय इसके कि वे फैमिली सेटलमेंट एग्रीमेंट एफएसए यानी आधिकारिक रूप से बंटवारे की सहमति दे दे। जहां अभिषेक को माइक्रोटेक डेवलपर्स Lodha Group का कंट्रोल मिला। वहीं अभिनंदन को 429 करोड़ नगद कैश, कई फ्लैट्स और दो Group कंपनियां मिली।
यहां सेटलमेंट की सबसे अहम शर्त यह थी कि अभिनंदन अगले 5 साल तक यानी 2022 तक रियलस्टेट बिजनेस में नहीं जा सकता और ना ही वह कभी Lodha नाम का इस्तेमाल करके रियलस्टेट बिजनेस शुरू कर सकता था।
नया मोड़ – हाउस ऑफ अभिनंदन Lodha
कुछ समय तक तो यह बंटवारा शांतिपूर्ण और समझदारी से हुआ लग रहा था। बंटवारे के 2 साल बाद भी माइक्रोट्रोटेक डेवलपर्स के शेयर बाजार में कदम रखने के पहले भी अभिनंदन ने अपने बड़े भाई के रियलस्टेट कंपनी को 900 करोड़ का लोन दिया। यहां तक कि अपनी संपत्ति को गिरवी भी रख दिया जो बाद में उसे वापस मिल गई।
मगर 2021 में छोटे भाई ने अपनी खुद की कंपनी हाउस ऑफ अभिनंदन Lodha शुरू की और प्लॉट्स बेचने शुरू किए। ज्यादातर ऐसे इलाकों में जहां माइकोटेक की मौजूदगी नहीं थी। हालांकि कुछ जगहों पर टकराव जरूर हुआ।
विवाद की शुरुआत
दोस्तों यहां समझने वाली बात यह है कि पारिवारिक समझौते में प्लॉट बेचने की स्पष्ट रूप से मनाही नहीं थी और इससे माइक्रोटेक का कोई आमनासामना भी नहीं था क्योंकि माइक्रोटेक लंबी इमारतें बनाती थी। फिर भी यह अभिषेक को खटका क्योंकि 5 साल का नॉन कॉम्पीट क्लॉज़ को पूरा करने में अभी कुछ ही महीनों का समय था लेकिन उसने अपनी चुप्पी बनाए रखी।
हालांकि जब अभिनंदन ने नवंबर 2024 में दक्षिण मुंबई के अभिषेक के इलाके में अमेरिकन सेंटर को खरीदा और एक सुपर लग्जरी रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट बनाने की योजना बनाई तो भैया यह बात अभिषेक को ऐसी चुभ कि उसने अपने छोटे भाई के खिलाफ 5000 करोड़ का मुकदमा दायर कर दिया।
कानूनी लड़ाई
यह आरोप लगाते हुए कि उसने Lodha नाम का अवैध रूप से इस्तेमाल किया और यह कहते हुए कि समझौते का उल्लंघन हुआ है और उन्होंने 10,700 करोड़ जो Lodha ब्रांड को बनाने के लिए विज्ञापन और मार्केटिंग पर खर्च किए थे उसका फायदा उठाया है। लेकिन अब क्योंकि दोस्तों समझौते के दस्तावेज सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। इसलिए हम इन दावों को स्वतंत्र रूप से वेरीफाई नहीं कर सकते।
अब यहां अभिनंदन का मानना था कि उसे रियलस्टेट में Lodha नाम का इस्तेमाल करने का हक है। बस अकेले नहीं और उन्होंने बड़े भाई पर यह आरोप लगाया कि उनको जलन हो रही थी क्योंकि उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में 12 मिलियन स्क्वायर फीट से अधिक जमीन के प्लॉट बेचे थे।
कोर्ट का हस्तक्षेप
अभिषेक हाउस ऑफ अभिनंदन Lodha को हजम नहीं कर पा रहा है। हालांकि एक अंतरिम आदेश में मुंबई हाईकोर्ट ने अभिनंदन को अपनी वेबसाइट के मेन पेज पर एक डिस्क्लेमर जारी करने के लिए कहा। हाउस ऑफ अभिनंदन Lodha का माइक्रोटेक डेवलपर्स के Lodha समूह या ब्रांड से कोई संबंध नहीं है।
और जैसा कि पारिवारिक विवादों में होता है दोनों पक्षों को सुलह की सलाह दी गई और एक सुप्रीम कोर्ट जज को नियुक्त किया गया।
मां की चिट्ठी और सुलह
अब फिर चार हफ्ते बाद मां मंजू Lodha भी अपनी चिट्ठी के साथ आगे आई। तुम दोनों का एक दूसरे के व्यापार से कोई लेना देना नहीं। तो अपनी लड़ाई आपस में सुलझाओ। यह स्थिति बिल्कुल वैसी थी जैसे कोकिला बहन को अंबानी भाइयों के विवाद में दखल देना पड़ा। जिस पर हमने कहानी भी बनाई है। ऊपर लिंक पर क्लिक कीजिए।
वहीं पिता मंगल प्रभात Lodha इस पूरे मामले में चुप रहे। रिपोर्ट्स के मुताबिक वह अभिषेक के पक्ष में ज्यादा है। पर दोस्तों लगता है यहां मां की चिट्ठी का जादू चल गया और भाइयों ने आखिरकार सुलह की इच्छा दिखानी शुरू कर दी है।
सबक
यह चिट्ठी कभी ऐसे पब्लिक में नहीं आनी चाहिए थी। मैं अभी अपने छोटे भाई की परवाह करता हूं। लगता है यह दोनों भाई अन्य रियलस्टेट दिग्गजों से सबक ले रहे हैं। जैसे कि गोदरेज जिन्होंने बिना कोर्ट के दरवाजे खटखटाए अपने विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाया।
दोस्तों Lodha भाइयों की कहानी फिर से साबित करती है कि समझदारी से उत्तराधिकारी की योजना बनाना इतना महत्वपूर्ण है जैसे कि मुकेश अंबानी अपने साम्राज्य को अपने बच्चों के बीच बांट रहे हैं।