गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? जानिए क्या है इसके पीछे छिपा रहस्य,आसान भाषा में

Ganesh Chaturthi kyun manai jati hai? Iska rahasya, vrat katha, puja vidhi aur significance simple language mein padhiye
गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? जानिए क्या है इसके पीछे छिपा रहस्य। आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं। एक ऐसी गाथा जो हजारों वर्षों से हमारे दिलों में बसी है जिसकी गूंज आज भी हर हिंदू घर में गणपति बप्पा मोरया के जयकारों में सुनाई देती है। यह केवल एक त्यौहार की कहानी नहीं है। यह प्रेम की गाथा है। त्याग की कहानी है और सबसे बढ़कर यह विश्वास की अमर गाथा है।
कैलाश पर्वत की दिव्य गाथा
समय का कोई हिसाब था ना ही युगों की कोई गिनती जब ब्रह्मांड केवल एक विचार था परमपिता परमेश्वर के मन में उस काल की बात है जब कैलाश पर्वत की बर्फीली चोटियों पर जहां हवाओं में अभी भी दिव्यता की खुशबू तैरती है। वहां बसते थे महादेव और उनकी अर्धांगिनी जगत जननी पार्वती।
मातृत्व की प्यास
नमस्कार प्यारे दर्शकों मैं अर्जुन एक बार फिर आपका हार्दिक स्वागत करता हूं आपके अपने चैनल विद्या ज्ञान सागर में। आज की कथा अत्यंत ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक है। कथा शुरू करने से पहले आपसे एक विनम्र निवेदन है। शास्त्रों में कहा गया है कि अधूरी छोड़ी गई कथा दुख और पाप का कारण बनती है। कैसा था वह समय जब पार्वती माता अपने सुंदर केशों को संवारती थी। और शिव जी अपनी समाधि में लीन रहते थे। प्रेम था उनके बीच। लेकिन वह प्रेम जो शब्दों से कहीं गहरा था। पार्वती जी को लगता था कि कहीं कोई कमी है। कुछ अधूरा सा है इस संसार में। वो अकेली बैठती और मन ही मन सोचती मैं जगत की माता हूं। फिर भी मेरा अपना कोई बालक क्यों नहीं है जो मुझे मां कहकर पुकारे जो मेरी गोद में सिर रखकर सो जाए। उनकी आंखों में आंसू आ जाते। वो आंसू जो हर उस स्त्री की आंखों में आते हैं जो मातृत्व की प्यास लिए जीती है। शिव जी को पता था अपनी प्रिया के मन की बात लेकिन वह जानते थे कि समय अभी नहीं आया था।

गणेश जी का जन्म
ब्रह्मांड में अभी भी कुछ और रचना होनी थी। कुछ और दिव्य लीला होनी थी। एक दिन ओ कैसा दिव्य दिन था वह। पार्वती जी स्नान करने जा रही थी। उन्होंने अपने शरीर पर हल्दी का उपटन लगाया। वही हल्दी जो आज भी हमारे त्योहारों में पवित्रता का प्रतीक है। जब वो उपटन उतारने लगी तो वो मिट्टी उनके हाथों में आ गई। अचानक उनके मन में एक विचार आया। वो विचार जो हर मां के दिल में कभी ना कभी आता है। क्यों ना मैं इस मिट्टी से अपना एक बालक बना लूं। और उन्होंने अपने कोमल हाथों से अपने प्रेम से अपनी ममता से उस मिट्टी को आकार देना शुरू किया। कैसे बनती गई वो मूर्ति? पहले सिर, फिर धड़ फिर हाथ पैर। पार्वती जी के चेहरे पर वो मुस्कान थी जो हर कलाकार के चेहरे पर होती है। जब वो अपनी कृति को पूरा करने वाला होता है। लेकिन यह कोई साधारण कलाकृति नहीं थी। यह एक मां का प्रेम था जो मूर्त रूप ले रहा था। लेकिन पार्वती जी के मन में संदेह आया। यह तो केवल मिट्टी है। इसमें प्राण कैसे आएंगे? और तब हुआ वो चमत्कार जिसे देखने के लिए तरस जाते हैं ऋषि मुनि। पार्वती जी ने अपनी दिव्य शक्ति से उस मूर्ति में प्राण फूंक दिए। वाह! कैसा दृश्य रहा होगा वो जब उस मिट्टी के पुतले में सांस आई। जब उसकी आंखें खुली जब वह उठा और मां कहकर पार्वती जी के चरणों में गिर गया। पार्वती जी की खुशी का क्या ठिकाना? आखिरकार उन्हें मिल गया था वो जिसकी तलाश थी। अपना बालक अपना गणेश बेटा पार्वती जी ने कहा उनकी आवाज में अपार प्रेम था। तुम मेरे द्वार की रक्षा करना। जब तक मैं स्नान कर रही हूं किसी को भी अंदर आने मत देना। किसी को भी नहीं। जी मां। गणेश जी ने कहा उनकी आवाज में दृढ़ता थी। मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा और वह जाकर द्वार पर खड़े हो गए। अपनी मां की रक्षा के लिए अपनी मां के आदेश का पालन करने के लिए।
पिता और पुत्र का धर्मसंकट
कुछ समय बाद आए भगवान शिव। उनके माथे पर तिलक था। गले में रुद्राक्ष की माला और चेहरे पर वो गंभीरता जो सिर्फ महादेव के चेहरे पर हो सकती है। वो अपने घर आ रहे थे अपनी प्रिया पार्वती से मिलने लेकिन द्वार पर खड़ा था एक बालक जिसे वो पहले कभी नहीं देखा था। कौन है तू? शिव जी ने पूछा। उनकी आवाज में आश्चर्य था लेकिन कोई क्रोध नहीं। मैं गणेश हूं। बालक ने गर्व से कहा माता पार्वती का पुत्र और मैं आपको अंदर नहीं जाने दूंगा। मां ने मना किया है। शिव जी मुस्कुराए बेटा मैं इस घर का स्वामी हूं। पार्वती मेरी पत्नी है। मुझे अंदर जाने दो। नहीं, गणेश जी ने दृढ़ता से कहा। मां ने कहा है कि किसी को भी अंदर नहीं जाने देना। और मैं अपनी मां की बात का सम्मान करूंगा। अब यहां था वो मोड़ जहां दो धर्म आमने-सामने खड़े हो गए थे। एक तरफ था गणेश का धर्म, अपनी मां की आज्ञा का पालन। दूसरी तरफ था शिव का धर्म, अपने घर में प्रवेश का अधिकार। दोनों सही थे अपनी जगह पर। गणेश सही था क्योंकि वह अपनी मां की बात मान रहा था। शिव सही थे क्योंकि वह अपने ही घर में जा रहे थे। यही तो है जीवन का सबसे बड़ा धर्म संकट जब दो सही चीजें आपस में टकराती हैं। अंतिम बार कह रहा हूं शिव जी ने कहा अब उनकी आवाज में गंभीरता आ गई थी। मुझे जाने दो, कभी नहीं। गणेश जी ने अपना गधा उठाया। जब तक मां नहीं कहती तब तक आप यहां से नहीं जा सकते। और फिर हुआ वह जो नहीं होना चाहिए था। पिता और पुत्र के बीच युद्ध शुरू हो गया। लेकिन यह कोई साधारण युद्ध नहीं था। यह था धर्म और धर्म का युद्ध। कर्तव्य और कर्तव्य का संघर्ष। गणेश लड़े वीरता से। उन्होंने शिव जी के गणों को हराया। उन्होंने इंद्र को हराया। यहां तक कि ब्रह्मा जी को भी परास्त कर दिया। वह लड़ रहे थे अपनी मां के आदेश के लिए अपने वचन के लिए। लेकिन सामने था स्वयं महाकाल महादेव अंतः शिव जी ने अपना त्रिशूल निकाला क्षमा करो पुत्र वो बोले उनकी आवाज में दर्द था लेकिन तुम मुझे मजबूर कर रहे हो और एक ही वार में एक ही क्षण में गणेश जी का सिर कट गया वो सिर जिसे पार्वती जी ने इतने प्रेम से बनाया था वो सिर जिसमें एक मां का पूरा प्यार था वो वो धरती पर लुढ़क गया।

हाथी के सिर से नया जीवन
उसी समय पार्वती जी का स्नान पूरा हुआ। वो बाहर आए तो क्या देखा? अपना प्रिय पुत्र अपना गणेश सिर कटी अवस्था में पड़ा था। उनके मुंह से एक चीख निकली। वो चीख जो आज भी कैलाश की गुफाओं में गूंजती है। हाय मेरे बेटे वो रो पड़ी। क्या किया है तुमने? यह मेरा पुत्र था। मेरा प्रिय गणेश शिव जी स्तब्ध रह गए तुम्हारा पुत्र लेकिन यह कैसे हो सकता है पार्वती हमारा तो कोई पुत्र नहीं है था पार्वती जी रोते हुए बोली था मेरा बेटा मैंने इसे अपने हाथों से बनाया था अपने प्रेम से जलाया था और तुमने तुमने इसे मार डाला शिव जी के चेहरे पर जो भाव आए वो वर्णन से परे हैं पहले आश्चर्य फिर समझ और अंत में गहरा पछतावा। उन्होंने अपना ही पुत्र मार दिया था। अपनी अज्ञानता में अपने अहंकार में उन्होंने वह किया था जिसकी कभी माफी नहीं हो सकती। पार्वती वो बोले उनकी आवाज कांप रही थी। मुझे माफ कर दो। मुझे नहीं पता था कि यह हमारा पुत्र है। मैं इसे वापस जला दूंगा। कैसे? पार्वती जी का दर्द फूट पड़ा। कैसे जलाओगे तुम मेरे बेटे को? उसका सिर तो कट गया है। मैं कोई ना कोई उपाय करूंगा। शिव जी ने कहा, मैं गरुड़ को भेजूंगा। वे जाकर किसी का सिर ले आएंगे। लेकिन कैसे सिर? पार्वती जी ने पूछा, ऐसी मां का सिर जो अपने बच्चे से मुंह फेर कर सोई हो। क्योंकि तभी हम बिना पाप के किसी निर्दोष का सिर ले सकते हैं। गरुड़ जी उड़े। वो उड़े पूरे ब्रह्मांड में। वन से वन, पर्वत से पर्वत, नगर से नगर। लेकिन कहीं भी उन्हें ऐसी मां नहीं मिली जो अपने बच्चे से मुंह फेर कर सोई हो। हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह करके सोती थी। चाहे वह इंसान हो या पशु-पक्षी। यही तो है मातृत्व की महानता। एक मां कभी अपने बच्चे से मुंह नहीं फेरती। उसकी आंखें हमेशा अपने बच्चे पर रहती है। चाहे वह जाग रही हो या सो रही हो। अंतः गरुड़ जी को एक हथेनी दिखाई दी। प्रकृति का नियम है कि हाथी अपने बच्चे से मुंह फेर कर सोता है क्योंकि उसके शरीर की बनावट ऐसी है। गरुड़ जी ने उस हाथी के बच्चे का सिर काटा और ले आए। यही मिला है। गरुड़ जी ने कहा, पूरे ब्रह्मांड में कोई मां अपने बच्चे से मुंह फेर कर नहीं सो रही थी। शिव जी ने उस हाथी के सिर को गणेश के धड़ से जोड़ा और फिर हुआ एक और चमत्कार। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से गणेश जी में प्राण फूंके। गणेश जी की आंखें खुली। लेकिन अब उनका चेहरा अलग था। हाथी का मुंह लेकिन आंखों में वही प्रेम, वही भक्ति। वो उठे और सबसे पहले अपनी मां के चरण छुए। मां वो बोले आपका गणेश वापस आ गया। पार्वती जी की खुशी का क्या ठिकाना? वो अपने बेटे को गले लगाकर रो पड़ी। मेरे बेटे तुम वापस आ गए। लेकिन तुम्हारा चेहरा। चिंता मत करो मां। गणेश जी मुस्कुराए। मैं वहीं हूं। आपका प्रिय गणेश बस अब मैं और भी खूबसूरत हो गया हूं। हाथी की सूंड वाले को कोई क्यों ना चाहेगा? शिव जी आगे आए। वो अभी भी अपराध बोध से भरे थे। पुत्र वो बोले मुझसे गलती हुई है।

गणपति का पहला पूजन
मैं तुम्हें सभी देवताओं से पहले पूजा जाने का वरदान देता हूं। आज से तुम विघ्नहर्ता कहलाओगे। हर शुभ काम से पहले तुम्हारी पूजा होगी। और मैं तुम्हें गणपति की उपाधि देता हूं। शिव जी ने आगे कहा तुम मेरे सभी गणों के स्वामी होगे। पार्वती जी भी बोली बेटा तुम एकदंत कहलाओगे, लंबोदर कहलाओगे, गजानन कहलाओगे और जो भी तुम्हारी सच्चे मन से पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा जो अब तक मुगदर्शक बने खड़े थे, इस घटना को सिर्फ एक दुर्घटना न समझा जाए। इसमें एक गहरा संदेश है। भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी के दिन गणेश जी का यह नया जन्म हुआ है। इसलिए यह दिन गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाएगा। और इस दिन सरस्वती जी ने कहा जो भी व्यक्ति गणेश जी की पूजा करेगा उसके सभी विघ्न दूर होंगे। उसकी बुद्धि का विकास होगा और उसे सफलता मिलेगी।

गणेश चतुर्थी व्रत की उत्पत्ति
एक बार शिव जी और पार्वती जी नर्मदा के किनारे बैठे थे। खुशी का माहौल था। प्रेम की बातें हो रही थी। क्यों ना कुछ खेल खेले? पार्वती जी ने कहा, चौपड़ खेलते हैं। ठीक है। शिवजी मुस्कुराए। लेकिन हारजीत का फैसला कौन करेगा? शिवजी ने तिनकों से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण फूंके। बेटा उन्होंने कहा तुम हमारे खेल में निष्पक्ष निर्णायक बनना। खेल शुरू हुआ तीन बार खेला गया चौपर। तीनों बार पार्वती जीती। यह एक संयोग था। लेकिन जब बालक से पूछा गया तो उसने डर के मारे शिव जी को विजेता बताया। क्या? पार्वती जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। तुमने झूठ कहा। मैं तीनों बार जीती हूं। क्रोध में उन्होंने बालक को श्राप दे दिया। तू लंगड़ा हो जा। कीचड़ में पड़ा रहा। बालक रोने लगा। माता मुझसे गलती हुई है। कृपया माफ कर दीजिए। पार्वती जी का दिल पिघल गया। बेटा, वो बोली मेरे श्राप से बचने का एक ही उपाय है। गणेश व्रत करो। 21 दिन तक लगातार गणेश जी की पूजा करो। उससे तुम्हारा कल्याण होगा। बालक ने वैसा ही किया। 21 दिन तक कठोर व्रत किया। गणेश जी की पूजा की। गणेश जी प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि वह अपने पैरों से चलकर कैलाश पहुंच सके। जब बालक कैलाश पहुंचा और अपनी कहानी सुनाई तो शिव जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया। इससे पार्वती जी का गुस्सा शांत हुआ। पालती जी को भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई। उन्होंने भी 21 दिन व्रत किया। व्रत के अंत में कार्तिकेय वापस आ गए। इस तरह गणेश चतुर्थी का व्रत बना। वो व्रत जो हर मनोकामना पूरी करता है। अब आते हैं उन रहस्यों पर जो गणेश चतुर्थी के साथ जुड़े हैं।

गणेश जी के रहस्य
पहला रहस्य है गणेश जी का हाथी मुंह क्यों? हाथी बुद्धि का प्रतीक है। उसकी याददाश्त बहुत तेज होती है। वह कभी अपने मित्रों को नहीं भूलता। गणेश जी का हाथी मोह इसीलिए है कि वह हमारी हर प्रार्थना याद रखते हैं। हमारे हर दोग को समझते हैं। दूसरा रहस्य है गणेश जी का पेट इतना बड़ा क्यों? क्योंकि उनमें पूरे ब्रह्मांड को समाने की क्षमता है। वह हमारे सभी दुख, सभी परेशानियां अपने पेट में समा लेते हैं। तीसरा रहस्य है गणेश जी का एक ही दांत क्यों? क्योंकि सत्य एक ही होता है। झूठ अनेक हो सकते हैं। लेकिन सच हमेशा एक ही होता है।
गणेश चतुर्थी व्रत विधि
गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहते हैं तो सुनिए इसकी सही विधि। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। साफ कपड़े पहने। घर को साफ करें। गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। अगर मूर्ति नहीं है तो चिंता ना करें। एक छोटा सा दिया जलाएं और मन में गणेश जी का ध्यान करें। उन्हें दूर्वा अर्पित करें। दूर्वा क्यों? क्योंकि यह घास कभी नहीं मरती। हमेशा हरी रहती है। यह अमरता का प्रतीक है। मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। गणेश जी को मिठाइयां बहुत प्रिय है। लेकिन अगर मिठाई नहीं है तो कोई बात नहीं। जो भी आपके घर में है प्रेम से अर्पित करें।
गणेश जी की बुद्धिमत्ता की कथाएं
एक बार की बात है। शिव पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश के लिए एक प्रतियोगिता रखी। जो भी पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा उसे एक विशेष फल मिलेगा। कार्तिकेय तुरंत अपने मयूर पर बैठकर उड़ गए। वह तेज थे। फुर्तीले थे। पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने निकले। गणेश जी सोच में पड़ गए। उनका वाहन था चूहा। चूहे से कैसे इतनी जल्दी पृथ्वी की परिक्रमा हो सकती है? अचानक उनके मन में एक विचार आया। वो अपने माता-पिता के पास गए और उनकी परिक्रमा करने लगे। यह क्या कर रहे हो? शिव जी ने पूछा, “मैं पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा हूं।” गणेश जी मुस्कुराए। आप दोनों ही तो मेरे लिए संपूर्ण संसार है। आपकी परिक्रमा ही पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा है। शिव पार्वती प्रसन्न हो गए। गणेश जी की बुद्धिमत्ता देखकर वे गदगद हो गए। जब कार्तिकेय वापस लौटे तो देखा कि गणेश जी पहले से ही विजय घोषित हो चुके थे। एक बार महर्षि व्यास ने गणेश जी से महाभारत लिखने को कहा। लेकिन शर्त यह है व्यास जी ने कहा कि मैं जो भी बोलूं आप बिना रुके लिखते रहें। ठीक है। गणेश जी ने कहा लेकिन मेरी भी एक शर्त है। आप बिना रुके बोलते रहें। लेखन शुरू हुआ। गणेश जी तेजी से लिख रहे थे। अचानक उनकी कलम टूट गई। अब क्या करें? व्यास जी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। गणेश जी ने तुरंत अपना एक दांत तोड़ा और उसे कलम बनाकर लिखना शुरू कर दिया। इस तरह वो एक दंत कहलाए। यह कहानी सिखाती है कि ज्ञान के लिए, शिक्षा के लिए हमें कितना भी त्याग करना पड़े करना चाहिए।
चंद्र दर्शन का रहस्य
गणेश चतुर्थी के दिन चांद को नहीं देखना चाहिए। क्यों? एक कहानी है इसके पीछे भी। एक बार गणेश जी अपने वाहन चूहे पर सवार होकर जा रहे थे। रास्ते में चूहे को सांप दिखाई दिया। डरकर चूहा अचानक रुक गया। गणेश जी गिर गए और उनका पेट फट गया। उन्होंने अपने पेट को बांधा और उस सांप को अपनी कमर में लपेट लिया। यह देखकर चांद हंसने लगा। गणेश जी को गुस्सा आया। उन्होंने चांद को श्राप दिया कि जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन चांद को देखेगा उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसलिए गणेश चतुर्थी के दिन चांद को ना देखें। अगर गलती से देख लें तो श्यामंत तक मणि की कथा सुने या पढ़ें।
गणेश जी के 108 नाम
हर नाम में एक गुण छुपा हुआ है। विनायक विशेष नेता गणपति गणों के स्वामी विघ्नहर्ता विघ्नों को हरने वाले एक दंत एक दांत वाले लंबोदर बड़े पेट वाले गजानन हाथी के मुंह वाले मूषक वाहन चूहे की सवारी करने वाले मंगल मूर्ति कल्याणकारी रूप वाले हर नाम में एक शक्ति है। जब हम इन नामों का जाप करते हैं तो यह शक्तियां हमारे अंदर आती है।
सामाजिक एकता का पर्व
गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक त्यौहार नहीं है। यह सामाजिक एकता का भी त्यौहार है। अमीर गरीब, छोटे-वड़े सभी जातियों के लोग एक साथ आकर इसे मनाते हैं। गणेश जी के सामने सभी बराबर हैं। वो नहीं देखते कि कौन अमीर है, कौन गरीब। वो सिर्फ भक्ति देखते हैं, प्रेम देखते हैं। पंडालों में जब हजारों लोग एक साथ आरती करते हैं तो वह दृश्य अद्भुत होता है। उस समय लगता है जैसे पूरा समाज एक हो गया है।
विश्वभर में गणेश उत्सव
आज गणेश चतुर्थी सिर्फ भारत में नहीं बल्कि दुनिया भर में मनाई जाती है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप जहां भी भारतीय हैं, वहां गणेश चतुर्थी का उत्सव होता है। विदेशों में रहने वाले भारतीय इस त्यौहार के जरिए अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति सिखाते हैं। गणेश जी इस तरह केवल भारत के नहीं बल्कि विश्व के देवता बन गए हैं।
निष्कर्ष
गणेश चतुर्थी की यह कहानी यहीं समाप्त होती है। लेकिन गणेश जी की कृपा कभी समाप्त नहीं होती। वह हमेशा हमारे साथ है। हमारे दिलों में बसे हैं। प्यारे भक्तों, हमें आशा है कि यह कथा आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आई होगी। कृपया इसे लाइक करें और दूसरों तक पहुंचाने के लिए इसे शेयर करें। अपने श्रद्धा भाव को कमेंट सेक्शन में गणपति बप्पा मोरया लिखकर प्रकट करें। इस कथा को अंत तक पढ़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद। गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया गणपति बप्पा मोरया।