राज-उद्धव की जोड़ी, BJP के High Level खतरा?

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परिचय:

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का नाम दशकों से गूंज रहा है। बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले दो प्रमुख चेहरे हैं – राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे। एक समय था जब दोनों भाई जैसे थे, लेकिन समय के साथ विचारधाराओं और नेतृत्व के तौर-तरीकों में अंतर आया और दोनों की राहें अलग हो गईं। राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बनाई तो वहीं उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान संभाली।

हाल के समय में महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ ऐसी हलचलें हो रही हैं, जिससे ऐसा लग रहा है कि ये दोनों फिर से एक हो सकते हैं। आइए इस संभावित गठबंधन पर विस्तार से बात करते हैं।

1. ठाकरे परिवार का इतिहास और बंटवारा

बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी। उनका मकसद मराठी मानुष के अधिकारों की रक्षा करना और हिंदुत्व की भावना को मजबूत करना था। राज ठाकरे को बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन 2006 में मतभेदों के चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी MNS बनाई।

राज का नेतृत्व आक्रामक और जोशीला रहा है, वहीं उद्धव का अंदाज शांत और योजनाबद्ध रहा। यही फर्क दोनों के बीच राजनीतिक दूरी की एक बड़ी वजह बनी।

2. वर्तमान राजनीतिक स्थिति

  • शिवसेना (उद्धव गुट) को एकनाथ शिंदे द्वारा तगड़ा झटका लगा है। अब पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी शिंदे गुट के पास है।
  • MNS की राजनीतिक पकड़ हाल के वर्षों में कमजोर पड़ी है, लेकिन राज ठाकरे की भाषण शैली और कड़क हिंदुत्व स्टैंड आज भी लोगों को आकर्षित करता है।
  • बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) का गठबंधन सत्ता में है, लेकिन विपक्ष में NCP (शरद पवार), कांग्रेस और उद्धव गुट की महाविकास अघाड़ी है।
  • इन सबके बीच, अगर राज और उद्धव मिलते हैं, तो यह एक बहुत बड़ा समीकरण बन सकता है।

3. क्यों हो रही है साथ आने की चर्चा?

1. राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई:

राज ठाकरे की पार्टी को लंबे समय से सत्ता से दूर रहना पड़ा है। वहीं उद्धव ठाकरे भी अब पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के बिना हैं। दोनों को लगता है कि अकेले चलने से अब फायदा नहीं हो रहा।

2. बाल ठाकरे की विरासत का सम्मान:

राज और उद्धव दोनों मानते हैं कि बालासाहेब की विचारधारा को कोई और न अपनाए। अगर दोनों साथ आते हैं, तो वे इस विरासत को और मजबूती से आगे बढ़ा सकते हैं।

3. मराठी वोट बैंक का एकीकरण:

मराठी मतदाता अभी बंटा हुआ है। अगर राज और उद्धव साथ आते हैं, तो यह वोट बैंक फिर से एकजुट हो सकता है।

4. लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तैयारी:

2026 तक महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और 2029 तक अगला लोकसभा चुनाव है। ऐसे में गठबंधन का समय अभी सही माना जा रहा है।

4. क्या यह गठबंधन संभव है?

यह सवाल सबसे बड़ा है। दोनों के बीच बीते वर्षों में आरोप-प्रत्यारोप हुए हैं। लेकिन राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता। अगर साझा एजेंडा बनता है — जैसे हिंदुत्व, मराठी अस्मिता और भाजपा विरोध — तो यह गठबंधन संभव है।

राज ठाकरे कुछ शर्तों पर ही उद्धव के साथ आ सकते हैं:

  • नई पार्टी या संयुक्त मोर्चा बनाया जाए।
  • नेतृत्व साझा किया जाए।
  • बाल ठाकरे के विचारों पर केंद्रित राजनीति की जाए।

उद्धव ठाकरे भी अब अधिक लचीले नजर आ रहे हैं। वे जान चुके हैं कि अकेले चलना आसान नहीं।

5. संभावित प्रभाव

अगर यह गठबंधन होता है, तो इसका असर महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा पड़ेगा:

  • भाजपा के लिए चुनौती: उद्धव और राज साथ आ जाएं, तो भाजपा को मराठी और हिंदुत्व दोनों मोर्चों पर कठिनाई हो सकती है।
  • एनसीपी और कांग्रेस को राहत: महाविकास अघाड़ी को इससे मजबूती मिल सकती है।
  • शिवसेना (शिंदे गुट) की मुश्किलें: शिंदे गुट की लोकप्रियता में गिरावट आ सकती है।

6. जनता का मूड

जनता आज भी राज ठाकरे के भाषणों और उद्धव ठाकरे की साफ छवि से प्रभावित है। युवा वर्ग राज के भाषणों को पसंद करता है, तो बुजुर्ग और पारंपरिक मतदाता उद्धव को सम्मान देते हैं। अगर दोनों एक मंच पर आते हैं, तो जनता इसे स्वागत योग्य कदम मानेगी — खासकर वे लोग जो बाल ठाकरे को आदर्श मानते हैं।

7. निष्कर्ष:

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का साथ आना केवल एक राजनीतिक गठबंधन नहीं होगा, बल्कि यह ठाकरे परिवार की एकता का प्रतीक भी होगा। हालांकि रास्ता आसान नहीं है, लेकिन अगर दोनों ईमानदारी से एक मंच पर आते हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव संभव है।

राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। अगर पवार परिवार, गांधी परिवार और यहां तक कि अटल-आडवाणी जैसे नेता समय के साथ एक हो सकते हैं, तो राज और उद्धव क्यों नहीं?

समाप्ति विचार:

“अगर ठाकरे साथ आए, तो महाराष्ट्र बोलेगा – जय महाराष्ट्र, एक बार फिर ठाकरे सरकार!

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